आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में पोस्टमार्टम ( postmortem ) से जुड़ी कुछ ऐसी खास बात बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने आजतक न कभी सोचा होगा और न ही आप जानते होंगे ! आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पोस्टमार्डम ( postmortem ) एक तरह की शल्य क्रिया ( Operation ) होती है, जिस में शव का परीक्षण किया जाता है ! शव के परीक्षण करने का मतलब किसी व्यक्ति की मौत के सही कारणों का पता लगाना है।
क्यों नहीं होता है रात में पोस्टमार्टम
पोस्टमार्टम ( postmortem ) करने से पहले मृतक के सगे सम्बन्धियों की सहमति ली जाती है ! साथ ही आपकी जानकारी के लिए बता दें कि व्यक्ति की मौत के बाद उसका 6 से 10 घंटे के अंदर ही पोस्टमार्टम किया जाता है और व्यक्ति की मौत के बाद उसका पोस्टमार्टम ( postmortem ) कभी रात में नहीं किया जाता और इसके पीछे का कारण होता है कि इससे जब व्यक्ति की मौत हो जाती है और अगर 6 से 7 घंटे के अंदर उनका पोस्टमार्टम ( postmortem ) नहीं होता और उससे ज्यादा समय हो जाता है तो शवों में कई तरह के प्राकृतिक परिवर्तन होने लगते हैं।हमारे दिमाग में अक्सर कई तरह के सवाल आते रहते हैं, जिनका जवाब खोजना थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये नामुमकिन हो। कुछ इसी तरह का एक सवाल ये है कि आखिर शवों का पोस्टमॉर्टम दिन में ही क्यों किया जाता है, रात में क्यों नहीं? तो आइए हम जानते हैं कि ऐसी क्या वजह है, जिसके कारण शवों का पोस्टमॉर्टम केवल दिन में ही होता है।
दरअसल, पोस्टमॉर्टम एक प्रकार का ऑपरेशन होता है, जिसमें शव का परीक्षण किया जाता है। शव का परीक्षण इसलिए किया जाता है, ताकि व्यक्ति की मौत के सही कारणों का पता लगाया जा सके। बता दें कि पोस्टमॉर्टम के लिए मृतक के सगे-संबंधियों की सहमति अनिवार्य होती है। हालांकि, कुछ मामलों में पुलिस अधिकारी भी पोस्टमॉर्टम की इजाजत दे देते हैं, जैसे की हत्या।
इसलिए किया जाता है दिन में पोस्टमार्टम
जैसे कि शरीर ऐंठन लगता है और इसी ऐंठन के बाद शरीर के किसी भी अंग के साथ किसी भी तरह की छेड़ छाड़ करना काफी मुश्किल हो जाता है ! शवों का पोस्टमॉर्टम करने का समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का ही होता है ! इसके पीछे वजह ये है कि रात में ट्यूबलाइट या एलईडी की कृत्रिम रोशनी में चोट का रंग लाल के बजाए बैंगनी दिखाई देता है और फॉरेंसिक साइंस में बैंगनी रंग की चोट का कोई उल्लेख नहीं किया गया है ! प्राकृतिक व कृत्रिम रोशनी में चोट के रंग अलग दिखने से पीएम रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
व्यक्ति की मौत के बाद छह से 10 घंटे के अंदर ही पोस्टमॉर्टम किया जाता है, क्योंकि इससे अधिक समय होने के बाद शवों में प्राकृतिक परिवर्तन, जैसे कि ऐंठन होने लगते हैं। शवों का पोस्टमॉर्टम करने का समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का ही होता है।
इसके पीछे वजह ये है कि रात में ट्यूबलाइट या एलईडी की कृत्रिम रोशनी में चोट का रंग लाल के बजाए बैंगनी दिखाई देता है और फॉरेंसिक साइंस में बैंगनी रंग की चोट का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। प्राकृतिक और कृत्रिम रोशनी में चोट के रंग अलग दिखने से पोस्टमॉर्टम के रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। भारत के कोर्ट में मान्य जेसी मोदी की किताब जुरिस्प्रूडेंस टॉक्सिकोलॉजी में इस बात का उल्लेख भी है ।
धार्मिक कारण भी
रात में पोस्टमॉर्टम नहीं कराने के पीछे एक धार्मिक कारण भी बताया जाता है। क्योंकि कई धर्मों में रात को अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। ऐसे में कई लोग मृतक का पोस्टमॉर्टम रात को नहीं करवाते हैं।
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