December 22, 2024

कौन है 37 साल की फ्रांसेस हौगेन जिसने जकरबर्ग को घुटनों पर ला दिया, फेसबुक का नाम मेटा करना पड़ा

फ्रांसेस हौगेन

दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक (Facebook) के सीईओ मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) ने कंपनी का नाम बदलकर मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक (Meta Platforms Inc.) करने की घोषणा की है। इसके पीछे उनका तर्क है कि फेसबुक नाम में वह सब कुछ शामिल नहीं है जो कंपनी अब करती है। लेकिन हाल में एक के बाद एक कई खुलासों के कारण फेसबुक की पूरी दुनिया में फजीहत हुई है। समझा जा रहा है कि इससे पीछा छुड़ाने के लिए फेसबुक अपना नाम बदलने जा रही है।

फेसबुक की एक पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस हौगेन (Frances Haugen) ने कंपनी के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। उनके द्वारा लीक किए गए कंपनी के इंटरनल डॉक्युमेंट्स के आधार पर कई रिपोर्ट्स मीडिया में आई हैं। इन्हें फेसबुक पेपर्स (Facebook Papers) नाम गया है। इससे दुनियाभर में फेसबुक की बहुत फजीहत हुई है। 37 साल की हौगेन ने अमेरिकी संसद की कमेटी में हुई पेशी में भी कई खुलासे किए। इन खुलासों के बाद फेसबुक की मुश्किलें बढ़ गई।

कौन हैं हौगेन
हौगेन ने करीब दो साल तक फेसबुक की सिविक इंटेग्रिटी टीम में प्रॉडक्ट मैनेजर के रूप में काम किया। उनका काम प्लेटफॉ्रम पर फैलाए जा रहे दुष्प्रचार पर नजर रखना था और यह सुनिश्चित करना था कि प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए न हो। फेसबुक में काम करने से पहले वह Google, Pinterest और Yelp जैसी टॉप कंपनियों में काम कर चुकी थीं। 2010 में हार्वर्ड बिजनस स्कूल में मैनेजमेंट की पढ़ाई करते हुए उन्होंने डेटिंग प्लेटफॉर्म Secret Agent Cupid की शुरुआत की थी। बाद में यह पॉपुलर डेटिंग ऐप Hinge बन गया।

हौगेन का कहना है कि 2014 से ही उनकी पैशन सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार को रोकना रहा है। इसकी वजह यह थी कि उनके एक पारिवारिक मित्र को ऐसे ऑनलाइन फोरम्स की लत लग गई थी जिनमें व्हाइट नेशनलिस्ट थिअरीज का प्रचार किया जाता था। इसलिए 2018 में जब उन्हें फेसबुक से नौकरी का ऑफर मिला तो हौगेन ने कहा कि उन्हें लोकतंत्र और दुष्प्रचार से जुड़ा काम चाहिए। 2019 में वह कंपनी की सिविक इंटेग्रिटी टीम से जुड़ी जो दुनियाभर में चुनावी हस्तक्षेप पर नजर रखती है। लेकिन 2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के बाद इस टीम को खत्म कर दिया गया।

लोगों से ज्यादा प्रॉफिट की चिंता
फेसबुक की प्रॉडक्ट मैनेजर रहीं होगैन ने कहा कि फेसबुक से बच्चे बिगड़ रहे हैं, समाज में विभाजन हो रहा है और लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। उन्होंने कहा कि कंपनी का एडवरटाइजिंग बेस्ड बिजनस मॉडल ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्लेटफॉर्म से जुड़े रहने पर जोर देता है और कंपनी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए निगेटिव इमोशंस का सहारा लेती है। कंपनी की लीडरशिप अच्छी तरह जानती है कि फेसबुक और इंस्टाग्राम को किस तरह सुरक्षित बनाया जा सकता है लेकिन वे ऐसा नहीं करते हैं। उनके लिए लोगों की जिंदगी से ज्यादा अपने प्रॉफिट की चिंता है।

उन्होंने कहा कि फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग के पास कंपनी में आधे के अधिक वोटिंग शेयर्स हैं और कंपनी को चलाने के लिए वही जिम्मेदार हैं। कुछ सांसदों और आलोचकों ने फेसबुक को तोड़ने की वकालत की है लेकिन हौगेन ने कहा कि इसके बजाय कंपनी को बदलावों के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। इससे कंपनी का प्रॉफिट प्रभावित नहीं होगा। हौगेन ने एक दूसरे खुलासे में बताया कि भारत में यह प्लेटफॉर्म ‘फेकबुक’ (फर्जी सामग्री की पुस्तक) की शक्ल लेता जा रहा है।

ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने झुकाया
होगैन ने एक इंटरव्यू में कहा कि सिविक इंटेग्रिटी टीम के खत्म होने के बाद ही उनका फेसबुक में विश्वास डोलने लगा था। टीम के काम को विभिन्न डिपार्टमेंट्स में बांट दिया गया था। कंपनी दुष्प्रचार को रोकने के लिए खास प्रयास नहीं कर रही थी। कंपनी का जोर ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने पर था। उन्होंने यहां तक दावा किया कि 6 जनवरी को वॉशिंगटन में हुए दंगों की योजना में फेसबुक का इस्तेमाल किया गया था। सितंबर में हौगेन ने यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन में करीब 8 शिकायतें फाइल की थीं। इनमें आरोप लगाया गया था कि फेसबुक अपनी कमियों को छिपा रही है।

यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया ने जिस तरह फेसबुक पर दबाव बनाया उससे फेसबुक की विश्वसनीयता खतरे में थी। ऑस्ट्रेलिया फेसबुक समेत इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्मो पर कानूनी रूप से नजर रखने की योजना बना रहा है। इसके लिए एक कानून बनाने की तैयारी है। इस कानून का उल्लंघन करने पर 75 लाख डॉलर का जुर्माना तक लग सकता है। फ्रांस में भी फेसबुक को स्थानीय मीडिया कंपनियों के साथ समझौता करने पर मजबूर होना पड़ा है। यह समझौता फेसबुक पर शेयर की जानी खबरों और लेखों के कॉपीराइट के बारे में है।

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